उत्तर प्रदेश में नदियों की बदहाली को देखते हुए नीर फाउंडेशन द्वारा नदियों की राज्य नीति बनाने की पहल की गई है। इसके लिए संगठन द्वारा पहले ही देशभर के विषय विशेषज्ञों के साथ बैठकर उत्तर प्रदेश की नदी नीति का प्रारूप तैयार किया जा चुका है, जिसको कि मेरठ घोषणा पत्र का नाम दिया गया है। नदी नीति का यह प्रारूप कल उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री श्री धर्मपाल सिंह को सौंप दिया गया है। श्री धर्मपाल सिंह ने इसके लिए सकारात्मक पहल करने के लिए कहा है।
नीर फाउंडेशन पिछले दस वर्षों से नदियों की बेहतरी के लिए कार्य कर रहा है। इसमें हिण्डन, कृष्णी, काली पश्चिमी, काली पूर्वी, धमोला, पांवधोई, नागदेई, बूढ़ी गंगा व अन्य छोटी-छोटी नदियां शामिल हैं। नदियों के समक्ष उनमें बढ़ते प्रदूषण, पानी की कमी तथा अतिक्रमण जैसी समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। इसमें सबसे अधिक प्रभावित छोटी व बरसाती नदियां हुई हैं। बरसाती नदियों में जहां पानी का अभाव हो गया है, वहीं ये नदियों एक गंदा नाला बनकर रह गई हैं। छोट कस्बों/शहरों का घरेलू बहिस्राव तथा उद्योगों का तरल गैर-शोधित कचरा ही इन नदियों में बह रहा है। पानी के अभाव में यह नदियां सिकुड़ भी गई हैं, जिस कारण से इनके बेसिन पर अवैध अतिक्रमण करके इनको और अधिक संकरा बना दिया गया है।
आज से करीब चार-पांच दशक पहले जब ये नदियां बहती थी. उस समय भूजल का स्तर काफी ऊंचा था। बरसात भी अधिक होती थी, यही कारण था कि ये नदियां चौये के पानी (जमीन के नीचे से स्वतः पानी निकलना) से बहती रहती थी। भूजल के अत्यधिक दोहन व कम बरसात के चलते इन नदियों में मात्र चंद दिनों के लिए ही पानी रहता है। इसके अतिरिक्त अन्य दिनों में इनमें प्रदूषित पानी ही बहता है।
इन छोटी नदियों के प्रदूषित होने से गंगा-यमुना जैसी बड़ी नदियां भी बदहाल हो गई हैं। इनके प्रदूषण का असर से जहां भूजल प्रदूषित हुआ है, वहीं इनके किनारे बसे गांवों/कस्बों व शहरों में जल-जनित जानलेवा बीमारियां पनप रही हैं। किनारे बसे गांवों की कृषि मिट्टी तथा खादान्नों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
नदियों की उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए तथा भविष्य की नदियों का एक खाका खींचते हुए उत्तर प्रदेश की नदी नीति का एक प्रस्तावित मसौदा तैयार किया गया है। इसको बनाने में देशभर के विषय विशेषज्ञ व नीति निर्माताओं का सहयोग लिया गया है। जब यह नदी प्रारूप नदी नीति का रूप लेगा तो प्रदेश की नदियों का कुछ भला हो सकेगा।
प्रस्तावित नदी नीति के कुछ खास बिन्दु –
1. भारत के समाज द्वारा सदियों से हमारी नदियों को पूर्णतः नैसर्गिक जीवंत एवं पोषक प्रणाली के रूप में मान्यता प्राप्त है। अब आवश्यकता है कि प्रत्येक नदी प्रणाली को एक प्राकृतिक व्यक्ति का संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाए।
2. प्रदेश में नदी भूमि क्षेत्र को नदी संरक्षित क्षेत्र अधिसूचित किया जाए। उदगम/प्रदेश में प्रवेश बिन्दु से लेकर नदी के अन्तिम छोर तक नदी क्षेत्र अधिसूचित किया जाए।
3. नदी में किसी भी तरह का शोधित व गैर-शोधित अवजल व ठोस अपशिष्ट न डाला जाए।
4. नदियों के प्रवाह की आजादी सुनिश्चित करने हेतु नदी की जमीन नदी की ही रहनी चाहिए।
5. नदी नीति के क्रियान्वयन हेतु राज और समाज को आगे रखते हुए ऐसी समन्वित प्रणाली विकसित की जानी चाहिए जिसमें दोनों की भूमिकाएं स्पष्ट परिभाषित हों।
6. नदी का जल और भूजल एक दूसरे के पूरक होते हैं, इसीलिए भूजल को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय समाज के साथ बोरिंग की गहराई सुनिश्चित होनी चाहिए।
7. नदी पर बांध और तटबंध पर प्रतिबंधित होना चाहिए।
8. नदियों की भू-सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करते हुए भू-आकृतिकी से छेड़-छाड़ नहीं की जानी चाहिए।
9. चूंकि नदी प्रबंधन में समाज जिम्मेदार भूमिका भी अपेक्षित है, अतः नदी से संबंधित सभी आंकड़े, योजनाओं तथा परियोजनाओं से संबंधित सूचना समुचित माध्यमों के जरिए संबंधित जन को उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
10. नदी प्रबंधन करते समय परंपरागत भारतीय ज्ञान तंत्र तथा स्थानीय कौशल व तकनीक को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
11. बाढ को नहीं बाढ के विनास को रोकने का प्रयास करना चाहिए।
12. नदी नीति के क्रियान्वयन हेतु राज और समाज को सामने रखते हुए समन्वित प्रणाली विकसित की जानी चाहिए, जिसमें राज और समाज की भूमिका स्पष्ट रूप से परिभाषित होनी चाहिए। नदी और समाज के बीच सतत एवं मजबूत आपसी सम्पर्क व संवाद को स्थापित किया जाना चाहिए।
13. नदी की जैव-विविधता को प्राथमिकता देनी चाहिए न कि उपयोगिता को।
14. नदी जल के सीधे इस्तेमाल पर रोक होनी चाहिए।
15. प्रत्येक नदी का पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित किया जाए।