गैर-सरकारी संगठन नीर फाउंडेशन द्वारा मेरठ जनपद के परीक्षितगढ़ ब्लॉक के प्राकृतिक जल स्रोतों व अन्य जल संसाधनों पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, इस रिपोर्ट को तैयार करने में दो माह का समय लगा तथा लगातार संस्था के 10 कार्यकर्ताओं ने अपनी लगन व मेहनत से इसे तैयार किया है। परीक्षितगढ़ ब्लॉक पानी के मामले में आज कठिनाई के दौर में आ खड़ा हुआ है। इसके लिए यहां के वासी ही सर्वाधिक कसूरवार नजर आते हैं, क्योंकि हम सज्जन माता पिता की बिगड़ैल औलाद जैसा व्यवहार प्राकृतिक जल स्रोतों को मिटाने व पानी के दोहन के मामले में कर रहे हैं।

मेरठ जनपद के परीक्षितगढ़ ब्लॉक के प्राकृतिक जल स्रोतों संबंधी रिपोर्ट से तो यही लगता है। जनपद के कुल क्षेत्रफल 2564 वर्ग किलोमीटर में 660 गांवों, कस्बों व शहर बसा हुआ है। जनपद में परीक्षितगढ़ ब्लॉक ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां गांधारी सरोवर व नवलदेह कूप जैसे ऐतिहासिक महत्व के जल स्रोत मौजूद हैं तथा श्रृगऋषि आश्रम की झील जोकि आज पूरी तरह से सूख चुकी है।

रिपोर्ट के संबंध में संस्था के निदेशक रमन त्यागी ने बताया कि ब्लॉक में राजस्व अभिलेखों के अनुसार कुल 260 जौहड़ व तालाब होने का रिकार्ड मिलता है, परन्तु कुछ स्वार्थी, लालची व दबंग व्यक्तियों के चलते वर्तमान में मात्र 170 जौहड़ व तालाब ही देखने को मिलते हैं। बाकि बचे 90 जौहड़ व तालाबों का नामोनिशान तक मौजूद नहीं है। वर्तमान में मौजूद 170 तालाबों में से करीब 125 तालाबों पर आंशिक रूप से कब्जा आज भी है तथा मात्र 45 तालाब ही कब्जामुक्त नजर आते हैं। जबकि अगर कुल तालाबों पर अतिक्रमण की बात करें तो यह आंकड़ा 215 तालाबों का है। कुल 170 तालाबों में से करीब 75 तालाब कतई सूखे हुए हैं या उनमें गंदगी भरी है। मात्र 95 तालाबों में ही पानी मौजूद है।

यह रिपोर्ट माननीय उच्चतम न्यायालय के वर्ष 2001 में तालाबों की रक्षार्थ आए एक आदेश हिंचलाल तिवारी बनाम कमला देवी मामले की धज्जियां उडाती नजर आती है।

अगर तालाबों के खसरा नम्बर से उनकी जानकारी करें तो पता चलता है कि मिट चुके 90 जौहड़ व तालाबों पर कृषि का कार्य किया जा रहा है या फिर उन पर कंकरीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं। काश ये 260 तालाब आज मौजूद होते और पानी से लबालब भरे होते तो शायद ही मेरठ जनपद को भूजल के गिरते स्तर का दंश झेलना पड़ता। इन प्राकृतिक जल स्रोतों की स्थिति ऐसी तब है जब भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2001 में हिंचलाल तिवारी बनाम कमला देवी नामक मामले में साफ तौर पर कहा गया है कि किसी भी प्राकृतिक जल स्रोत पर अवैध रूप से कब्जा किया जाना दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है तथा न ही इन प्राकृतिक जल स्रोतों की जमीन को किसी को दान के रूप में आवंटित किया जा सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में तो ये दोनों कार्य धडल्ले से जारी हैं। भूजल के अत्यधिक दोहन, प्राकृतिक जल स्रोतों के मिटने व वर्षा के कम होने के कारण धरती के नीचे का पानी लगातार कम होता जा रहा है। हमें यह जानकर और भी दुख होगा कि भूजल स्तर को बढ़ाने मे सहायक प्राकृतिक जल स्रोत जहां मिटते जा रहे हैं, वहीं भूजल के दोहन के कार्य में तेजी आ रही है। गौरतलब है कि अकेले परीक्षितगढ़ ब्लॉक में निजी व सरकारी करीब 4917 टयूबवेल मौजूद हैं, जिनके माध्यम से सिंचाई हेतु भूजल निकाला जाता है।

ब्लॉक की कुल कृषि भूमि की सिंचाई के कार्य में करीब 75 से 80 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि मात्र 20 से 25 प्रतिशत पानी ही नहरों व अन्य माध्यमों से लिया जाता है। इसके अतिरिक्त पेयजल व अन्य दैनिक आवश्यकताओं के लिए जो प्रत्येक घर में एक से दो निजी व इण्डिया मार्का हैण्डपम्प लगे हुए हैं, उनसे कितना पानी रोजाना खींचा जाता होगा, इसको बस आंकड़ों में ही समझा जा सकता है। भूजल स्तर के लगातार नीचे खिसकने के कारण हालात यह बन चुके हैं कि अधिकतर हैण्डपम्प व टयूबवेल ठप्प हो चुके हैं। इनके विकल्प के रूप में सबमर्सीबल पम्प लगाए जा रहे हैं, लेकिन अगर हालात यही रहे तो सबमर्सीबल के बाद क्या होगा? इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्त में छिपा है। समस्या इतनी विकराल इसलिए होती जा रही है क्योंकि एक और तो परीक्षितगढ़ ब्लॉक में कुल तालाबों के क्षेत्रफल में से करीब 60 प्रतिशत भाग पर कब्जा किया जा चुका है या फिर कम वर्षा के कारण उसका इस्तेमाल जल संरक्षण के लिए नहीं हो पा रहा है, वहीं दूसरी ओर इतने अधिक टयूबवेलों व हैण्डपम्पों के माध्यम से लगातार भूजल खींचा जा रहा है अर्थात हम भूजल में डाल कुछ भी नहीं रहे हैं, उल्टे उससे भरपूर मात्रा में निकाल रहे हैं या यूं कहें कि हमने लेन-देन के रिश्ते को गड़बड़ा दिया है।

जौहड़ व तालाबों जैसा ही हाल कुओं का भी बना हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार ब्लॉक में कुल 85 कुएं ही देखने को मिले, जिसमें से 65 कुएं जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मौजूद हैं तथा मात्र 20 कुओं में ही पानी देखने को मिलता है। तथाकथित आधुनिक होते समाज ने कुओं को कूडे-दान में बदल दिया है। जिन कुओं से खींचकर पानी पिया जाता था, उनमें आज कूड़ा-कचरा भरा है या फिर उनमें शौचालयों के पाईप जोड़ दिए गए हैं। जिन कुओं का सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक महत्व होता था, उनको शौचालयों से जोड़ देना आखिर कौन से आधुनिक समाज की देन है? जब घर परिवार में शादी-विवाह की रस्म अदायगी की जाती थी या फिर नवजात बच्चे के पैदा होने की खुशी में, इन दोनों ही शुभ व खुशी के कार्यों में कुआं पूजन की प्रथा रही है, लेकिन कुओं के न बचने के कारण इन मान्यताओं को कराव के रूप में ही किया जा रहा है।

हमें आज यह भी जान लेना आवश्यक है कि हमारे पूवर्जों की आखिर वह क्या सोच रही होगी कि उन्होंने इतने अधिक जल स्रोतों का निर्माण किया और क्यों किया। वे आज के वैज्ञानिकों से भी अधिक समझदार रहे होंगे, जो उन्होंने निचले स्थानों पर तालाबों व जोहड़ों का निर्माण किया तथा ऊंचे स्थानों पर कुओं का। ऐसा इसलिए किया गया कि बहाव का पानी तालाबों में एकत्र हो जाए, जिसका इस्तेमाल पशुओं को पानी पिलाने व नहलाने, धोबी घाट आदि के लिए तथा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता था तथा ऊंचे स्थानों पर कुओं का निर्माण इसलिए किया गया ताकि इनमें गांव का गंदा पानी प्रवेश न करने पाए। एक बात और खास होती थी कि वर्षभर तालाब व कुओं का जल स्तर समान रहता था। तालाबों की मिट्टी से घर की दीवारों की लिपाई की जाती थी तथा बरसात से पहले घर की छतों पर उस चिकनी मिट्टी को डाला जाता था। तालाबों से मिट्टी निकालने की प्रथा प्रत्येक वर्ष अपनाई जाती थी, जिसमें कि घर की महिलाएं एक दिया लेकर गीत गाते हुए गांव के बाहर बने तालाब से मिट्टी निकालने की प्रथा को अंजाम देती थीं। पशुओं को प्रतिदिन इनमें पानी पिलाने व नहलाने के लिए ले जाया जाता था, जिससे आज हैण्डपम्प खींचा हुआ भूजल बचता था तथा पशु भी स्वस्थ्य रहते थे।

मनु स्मृति से लेकर इसी प्रकार कुरान, बाईबिल व वेदों में भी पानी को गंदा न करने व उसको संरक्षित करने पर जोर दिया गया है। अमृतसर में मौजूद सिखों का धार्मिक स्थान स्वर्ण मन्दिर के ताल को प्रत्येक वर्ष सेवकों द्वारा साफ किया जाना व उस तालाब की मौजूदगी सिख धर्म में पानी के महत्व को अपने आप बयान कर देती है। अगर राजस्थान व बुंदेलखण्ड जैसे हालातों से महफूस रहना है तो हमें शीघ्र-अतिशीघ्र चेतना होगा तथा अपने जल स्रोतों को बचाना होगा।

 

 Ponds Details of Parikshitgarh Block

Details of Parikshitgarh Block No of Ponds/Name etc.
Population 182400 near about
Ponds in a Revenue Records 260
Ponds in Present 170
Total Ponds in encroachment 215
Ponds in Encroachment at present 125
Ponds without Encroachment at present 45
Smallest Pond in the Block Poothi Village Area is 0.006 and plot no is 33
Biggest Pond in the Block Rasoolpur Gaonwari Area is 4.946 and plot no is 15
Maximum ponds in revenue records Poothi Village 24 Ponds
Minimum ponds in revenue records Khikhera, Amarsinghpur, Mujaffarpur, Khunti, Bali, Gesupur Sumali all village exist only one pond
No ponds in revenue records Amargarh, Veernagar, Sarangpur Mishripur, Salorkala and Salor Tejgarhi
No of Dry ponds 75
No of Water Ponds 95
Ponds in Commercial use 30
Ponds within population at present 120
Ponds without population at present 50
Average water level 30 Feet
Watershed Area at present 102.302 Hec.
No of India Mark II Hand pumps 1430 near about
No of Tube wells at present (Govt. or Private) 4917 near about
No of Wells at present 85
Water wells 20
Dry and encroachment wells 65